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तुम कहाँ हो गीतात्मा ! / संतलाल करुण

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तुम नहीं हो --
वह अंत
वह साँझ
वह रात
वह सुबह
वे साँसें
वह प्यास
वह डूबती
एक आस
सब कुछ
कितना सामने है
तुम नहीं हो |

तुम नहीं हो
अदेह गीते !
पर तुम्हारी
ये अर्थगूँज
नहीं जाती,
नहीं जाती
ये अनश्वर
ये हृदव्यापी
ये कालजयी
गँसीली अर्थगूँज
नहीं जाती |

ओ सुनो,
तुम कहाँ हो
गीतात्मा !
ये भावपृष्ठ
ये नेह-वेदना
ये अक्षर
ये शब्द
ये ब्रह्म
ये सारा
अतल-स्पर्श
ये मेरे सारे
स्वर-संभार
तुम्हारे लिए हैं
मेरे जन्म –
जन्म का
पण्य-फल
तुम्हारा है |