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तुम कितने अच्छे लगते हो / कमलेश द्विवेदी

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तुम कितने अच्छे लगते हो-यह कैसे तुम्हें बताऊँ मैं।
कोई जब नाम तुम्हारा ले तो यादों में खो जाऊँ मैं।

तुमसे मिलना सुख देता है
सुख देता है बातें करना।
सुख देता याद तुम्हें करके
आँखों में अश्कों को भरना
वो हर इक पल सुख देता है जिस पल तुमसे जुड़ जाऊँ मैं।
तुम कितने अच्छे लगते हो-यह कैसे तुम्हें बताऊँ मैं।

तुम ज़िद करते अच्छा लगता
अच्छी लगती है नादानी।
मुझको तब भी अच्छा लगता
जब करते हो तुम मनमानी।
हर एक अदा अच्छी लगती अब कितनी तुम्हें गिनाऊँ मैं।
तुम कितने अच्छे लगते हो-यह कैसे तुम्हें बताऊँ मैं।

तुमसे है नयनों का रिश्ता
या रिश्ता मेरे मन का है।
यह रिश्ता इसी जनम का है
या फिर पिछले जीवन का है।
जब ख़ुद मुझको ही पता नहीं, तुमको कैसे समझाऊँ मैं।
तुम कितने अच्छे लगते हो-यह कैसे तुम्हें बताऊँ मैं।