तुम तो पंछी की तरह / अशेष श्रीवास्तव
तुम तो पंछी की तरह
आसमाँ में उड़ गये
और मैं पेड़ की तरह
ज़मीं पर खड़ा रह गया...
खुश होने के मौके बहुत
आये मगर, मैं तो सदा
नाराज़ियाँ ही जाने क्यों
बस तलाशता रह गया...
यूँ तो बहुत थी खूबियाँ
उस शख़्स में पर जाने क्यों
हर वक़्त मैं नुक्सों को ही
बस खोजता रह गया...
तुम तो बिना कुछ सुने
फैसला सुना चल दिये
और मैं, क्या थी खता ये
सोचता ही रह गया...
देने वाले ने तो मुझको
हर तरह से ख़ूब दिया
मैं न जाने क्यों हमेशा
कमियाँ गिनता रह गया...
यूँ तो घिरा था भीड़ से
चारों तरफ़ जब जीत थी
हार में ना जाने क्यों बस
मैं अकेला रह गया...
नफरतों की तो दुकानें
खोलते ही चल पड़ीं
और वह प्यार प्यार
चीखता ही रह गया...
सोचा बहुत क्या-क्या कहुँगा
जब भी मैं तुमसे मिलुँगा
पर मिले तुम जब भी मुझसे
कुछ कहा कुछ रह गया...