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तुम दूर हो मुझसे / अलका सर्वत मिश्रा

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तुम
दूर हो मुझसे
बहुत दूर
मेरी आँखें
तरस रही हैं
दीदार को
 
पर पता है तुम्हें
मुझे अब अच्छा लगने लगा है
ख़्वाबों में खो जाना
क्योंकि
ख़्वाबों में तुम
चले आते हो हर बार
 
नींदें,
तुमसे मिलने का
एक ख़ूबसूरत बहाना हैं
जो मचलती हैं
तब मेरी आँखों में
जब हद्दे-नज़र तक
तुम नहीं होते