भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम न होगे / सैयद शहरोज़ क़मर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम न होगे तो क्या नमी होगी
बस, अधूरी ये ज़मीं होगी

दर्द छुपाने से हल नहीं होगा
अन्दर-अन्दर तह जमी होगी

सतह पर तो कुछ नहीं होगा
अन्दर-अन्दर बस, ठनी होगी

दुश्मनों में सब सहीहोगा
दोस्तों में तो सब कमी होगी

15.04.97