भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम नहीं सुन्दर / रामेश्वर दयाल श्रीमाली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं
तुम नही सुन्दर
सुन्दर तो है मेरी दृष्टि
लेकिन वह
बिना तुम्हारे
उपजती नहीं ।

नहीं
तुम नहीं सुन्दर
तुम तो केवल
आईना हो
फूल जैसा तो है
खिला खिला
     मन मेरा ।

नहीं
तुम नहीं पद्म-गंध
यह जो बिखरी है-
सुवास है मेरे मन की
तुम तो हो फ़कत हवा
लेकिन तुम्हारे बिना
चौफेर नहीं फैलती
मेरी मधुर सुगंध !

नहीं
तुम नहीं रंगीन
रंगों से सना है मेरा मन
तुम तो हो सिर्फ़ जल
लेकिन तुमहारे बिना
रंग ठहरता ही नही ।

तुम नही सुन्दर
तुम नही पद्म-गध
तुम नही रंगीन
लेकिन तुम बिन-
     रूप कहां ?
     गंध कहां ?
     रंग कहां ?

अनुवाद : नीरज दइया