तुम भी तो थकती हो! / निशा माथुर
रोबदार खर्राती-सी आवाज,
जैसे बच्चों को लगे परवाज!
एक भागा गुपचुप-सा कोने में,
दूसरा भागा कहीं छुपा बिछौने में!
बङकी आनन फानन में आयी,
गिलास में शीतल जल ले लायी!
मां को बेटे आने की सुधि आयी,
कुशल है, आत्मा को तृप्ति आयी!
कनखियों से माहौल को तौला,
बादशाह उस साम्राज्य का, बोला!
क्या गजब की दुनिया है बाहर,
चौबिस घण्टों का, मैं हूँ चाकर!
थोङा कन्धे झटकाये, उचकाये,
थकती आंखें मूंद विश्राम कराये!
दिल में उठते तूफानी वेग लिये,
वो आयी चाय का प्याला लिये!
कैसा रहा दिन? आपका बुदबुदाती,
नाजुक दिल को, हाथों से संभालती!
चाय पीजिये, दिन भर के थके हैं,
भली करेंगे राम, क्यों फिकर करे हैं!
इतने में बङकी, प्यार से मुस्कायी,
मां के लिये एक चाय लेकर आयी!
क्यूं सबकी चिंता में यूं घुलती हो
चाय पी लो मां, तुम भी तो थकती हो!