तुम वोट दिह्यो! अब घरै जाव!! / प्रदीप शुक्ल
बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो! अब घरै जाव!!
महिनन ते चक्कर काटि काटि
चौदह जोड़ी जूता घिसिगे
ई चुनाव के चाक्कर मा
चेलवा हमार केतना पिसिगे
उई रोजु बिचारे मिलै जायँ
तुम झुट्ठै बस बहाना बनाव
बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो! अब घरै जाव!!
आयोग रोजु चिल्लाय रहा
की वोट अपन ना तुम बेच्यो
हर कंडीडेट ते अलग अलग
लेकिन तुम खुब पैसा खैंच्यो
झूठे मक्कार तो बहुत हो तुम
अब हम ते सब कुछु ना कहाव
बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो! अब घरै जाव !!
काका चाचा कहिकै तुमरी
दाढ़ी माँ हाँथु लगाये रहेन
जो तुम भरी दुपहरी का
है राति कह्यो तो राति कहेन
लेकिन तुम्हार आडर होईगा
सरगै ते तोरई टूरि लाव
बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो! अब घरै जाव!!
जब जब हम तुम्हरे घरै गयेन
पानी खौलाय क दई दीन्ह्यो
औ पायँ प पायँ चढ़ाय क तुम
दुनिया भरि की बातैं कीन्ह्यो
जब कहेन हमारि पैरवी करौ
तुम मोड़ीही दीन्ह्यो बतकहाव
बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो! अब घरै जाव!!
बस सात वोट खातिर हम ते
तुम दुई हजार रुपिया लीन्ह्यो
पर एतन्यो पर हमका शक है
की वोट न हमका तुम दीन्ह्यो
चुपचाप हियाँ ते खिसकि लेव
हमका तुम गुस्सा ना देवाव
बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो! अब घरै जाव!!