भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम ही होते हो रिक्त / दिनेश जुगरान
Kavita Kosh से
उदासी हो
या प्रफुल्लता
तुम अपने को ही गवाँतेहो
दोनों स्थितियों में
तुम ही होते हो रिक्त
हर बार
और यदि नहीं जुड़े
दोनों से तुम
फिर जुड़ जाओगे
अपने अंदर के जगत से
बाहर से जुड़े तो
टूटोगे भीतर से
अपने से टूटे
तो विरह
जुड़ गए अपने से
तो योग