भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमने अपने पिता को खोया कभी ? / जमाल सुरैया / निशान्त कौशिक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने अपने पिता को खोया कभी ?
मैंने खोया है एक दफ़ा और मैं अन्धा हो गया

उन्होंने पिता के बदन को धोया और कहीं ले गए
मुझे उनसे यह उम्मीद न थी

तुम कभी तुर्की हमाम में गए हो ?
मैं गया था एक दफ़ा
एक फ़ानूस जल उठा था
मेरी एक आँख उसमें ख़राब हुई और मैं अन्धा हो गया

उन तुर्की हमामों में लगे पत्थर
वे पत्थर आईने के मानिन्द साफ़ थे
मैंने उनमें अपना अक्स देखा
मेरा चेहरा निहायत बदसूरत दिख रहा था
मुझे ख़ुद के चेहरे से यह उम्मीद न थी सो मैं अन्धा हो गया

तुम कभी आँख में साबुन लग जाने से रोए हो ?

मूल तुर्की भाषा से अनुवाद : निशान्त कौशिक