तुमसे क्या-क्या छुपा पाऊँगा / मृत्युंजय
आठों रास्तों से चलकर आया है दुख
सुख को बान्धे आया है घसीट कर
और अब
पटक देगा उसे तुम्हारी पूरी देह पर
तब कैसे क्या-क्या छुपाऊँगा तुमसे
कायनात समाई होगी जब तुम में
किन-किन चीज़ों से बचकर रहना है तुम्हें
इसकी लिस्ट है मेरे पास
इसकी भी लिस्ट है कि तुम्हें क्या अच्छा नहीं लगता
मेरे पास ढेरों लिस्टें हैं
और गिनतियाँ मुझे पूरी आती हैं
दुख के सहानुभूति के और प्यार के खोल में
कई बार लिपटे-लिथड़े
ख़यालों की रँगीन बुनाई
तुम्हें हैरान कर देती होगी अपने नँगेपन में
कई-कई बार
तुम भी मुझसे कैसे-कैसे क्या-क्या छुपाती हो
रोज़मर्रा की चीज़ें बताती हैं कभी-कभी
तुम नहीं
कैसे चलती है गृहस्थी की दुनिया
कैसे उबलती है छुपी हुई दुनिया
अगर पतीली के ऊपर झाँकोगे तो मुँह तुम्हारा ही जलेगा
मैंने ‘मैं’ से कहा
ढक्कन बन्द कर दो बे !
मैं छुपाने निकलता हूँ
जिस तरह कोई अहेरी निकलता है
हाँके के साथ बाजे के साथ
औ’ तुम्हारे छुपाए को कुचलता चल निकलता हूँ
तुम छुपाई खेलते हुए बता देती हो छुपने का पता
पर सिर्फ़ पता पता होने से यह तय नहीं हो जाता कि वहाँ पहुँचा भी जा सकता है
चलो एक चेहरा बनाएँ
जहाँ छुपाना छुपा न हो
क्या इस पेण्टिंग की नियति है ख़राब होना
नियति ?
कैसी बातें कर रहे हो तुम
छोटे बच्चे जैसा चेहरा बना सकते हो एकदम पारदर्शी साफ़-शफ़्फ़ाक
क्या हम प्यार करते हुए समय को रोक लेंगे
अभी मर जाएँ तो ?
तुमने कहा
छुपाने को विकसित किया तुमने कला में,
मैंने हिंसा की राह ली
अब मैं हिंसा को कला कहूँगा
हिंसा जब छुप जाएगी कला के पीछे
तब सही वक़्त होगा ।
आसमान से छटपटाहट बरसने लगेगी
तुमने ‘है’ कहा
मैंने होने के बारे में बात की
तुमने रजिया सुल्ताना की क़सम दिलाई थी मुझे ।
तुमने फिर कहा
अभी मर जाएँ हम ?
क्या हम प्यार करते हुए समय को रोक नहीं पाएँगे ?
तब मेरी बारी थी
और मुझे फ़ोन की घण्टियाँ सुनाई देने लगीं
ठीक तभी ।
यही होता है हमेशा
हमेशा यही होता है
तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते
मैं अपनी बातें सोचने लगता हूँ
तुम्हारे बारे में सोचना
आज तक नहीं आया मुझे ।