तुमसे डरने के कारण / शिवप्रसाद जोशी
तुम एक चालाक शै हो
लेकिन हसीन हो
तुम मासूम हो
पर हमेशा ज़ाहिर होता रहता है
तुम्हारा छल
एक परिंदा
तुम्हारे पास आता है उड़ता हुआ
तुम कहती हो ओह ये
इनसे मुझे नफ़रत है
एक परिंदा तुम्हारें बालों में
घोंसला बना रहा होता है उस वक़्त मज़े से
तुम तय कर देती हो सब कुछ
प्यार भरोसा विचार तुम्हारे आस पास मंडराते रहते हैं
पूरी दयनीयता से
कमबख़्त मानो उनका कोई वजूद ही न हो
ओंठों के कोनों पर थिरकती रहती है तुम्हारी जीभ
जैसे वो कोई कला है
जबकि वो सा़ज़िश की शुरूआत है
कहाँ पता चलता है
तुम कोई जादूगरनी हो या चुड़ैल
बच्चों की कहानियों में तुम इतनी ज़्यादा हो
और लोगों की ज़िंदगियों में
तुम रात बन जाती हो और सहसा सुबह भी तुम हो जाती हो
जब कोई धूप चाहता है
तुम एक कड़ी बदली की तरह छायी रहती हो
आशंका और संभावना पर भी
तुम्हारा बराबर का ज़ोर है
और इनसे निकलकर कोई थका मांदा पहुँच जाता है उम्मीद तक
तुम होती हो वहाँ कहती हुई आओ स्वागत है पथिक...
तुम्हारी रौनक से पहले कोई तुम्हारे दाँत देख पाता
तुम्हारी आवाज़ से पहले तुम्हारा व्यक्तित्व
तुम्हारी आपबीतियों से पहले
तुम्हारा खेल
काश पहले ही कोई देख लेता तुम्हारा वह मैदान
ओ मृत्य!