भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा दिया यह दिन / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसें दें हम
प्रभु, तुम्हारा दिया यह दिन आज का

पंछियों को दें
जिन्होंने आरती की सूर्यकुल की
ओस की उस बूँद को दें
पेड़ से जो अभी ढुलकी

या उसे दें
रात जो जलसा हुआ महराज का

उधर जो जनमा अभी है
उस नये आकाश को दें
या सड़क पर जो पड़ी है
उस अभागी लाश को दें

क्या करें हम
रात-भर लुटती रही इस लाज का

एक सपना था हमारा
उसे दे दें यह नया दिन
या उसे दें
जो हमारे पास बैठी आँख कमसिन

आज भी है
ज़िक्र वैसे नए तख़्तो-ताज़ का