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तुम्हारा न रहना / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
तुम्हारे अनगिनत बिम्ब
झाँकते हैं मेरी ओर
अपने हजार हाथों से दस्तक देते हुए
और उलझन में रहता हूँ
कैसे उन्हें प्रवेश दूँ
जबकि जानता हूँ
वे आयेंगे नहीं भीतर
केवल झाँकते रहेंगे बाहर से
तुम्हारा पास न रहना
इसी तरह का आभास देता है मुझे हर पल ।