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तुम्हारा प्यार / मनमोहन
Kavita Kosh से
यह स्त्री डरी हुई है
इस तरह
जैसे इसी के नाते
इसे मोहलत मिली हुई है
अपने शिशुओं को जहाँ-तहाँ छिपा कर
वह हर रोज़ कई बार मुस्कुराती
तुम्हारी दूरबीन के सामने से गुज़रती है
यह उसके अन्दर का डर है
जो तुममें नशा पैदा करता है
और जिसे तुम प्यार कहते हो