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तुम्हारा हाथ / राग तेलंग
Kavita Kosh से
लाओ तुम्हारा हाथ !
मैं अपने हाथ में लेकर
पूरी पृथ्वी की गर्माहट को तौलूँ
सोचता हूँ
तुम्हारे हाथ की मेंहदी की खु़शबू लेकर
दुनिया के तमाम फूलों में से होकर गुज़र जाऊँ
लाओ तुम्हारा हाथ !
तुम्हारे साथ को महसूस करते हुए
सब निराशाओं के बोझ को जाकर फेंक आऊँ
हिमालय के पार
मुझे थामे रहो
मैं अभी तुम्हारे भीतर हूँ
यहाँ से निकलकर
बाहर
शोर से भरी एक यात्रा की ओर
जाना है मुझे ।