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तुम्हारी गली में भटकते रहे / पीयूष शर्मा
Kavita Kosh से
होंठ पर प्रेम की कुछ कथाएँ लिए
हम तुम्हारी गली में भटकते रहे
देखने की तुम्हें कामनाएँ लिए
हम तुम्हारी गली में भटकते रहे
एक उम्मीद थी तुम मिलोगे वहीं
जिस जगह रास मोहन रचाते मिले
लाल चूनर जहाँ लाज ओढ़े मिली
कुछ हिरन-हिरनियों को रिझाते मिले
तुम न आए, यही वेदनाएँ लिए
हम तुम्हारी गली में भटकते रहे।
तारने अनमनी साधना का सफर
आ गए उलझनों की विफल राह में
पास कोई नहीं आस कोई नहीं
बस तुम्हीं थे हमारी सकल चाह में
साँस में दूरियों की व्यथाएँ लिए
हम तुम्हारी गली में भटकते रहे।
सूर्य निकला, ढला दिन, निशा आ गई
देख पाए न हम इक तुम्हारी झलक
शूल इतने तुम्हारे प्रशंसक हुए
जान पाए नहीं तुम प्रणय की महक
देह में रिक्त उर की शिलाएँ लिए
हम तुम्हारी गली में भटकते रहे।