भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी भूल / आभा पूर्वे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने मेरे आस-पास
घने जंगल-से
पेड़ लगा दिये थे
कि बाहर की रोशनी
अंदर न आ सके
शायद तुम
यह भूल गये थे
कि सूर्य
जमीन से उठते हुए
माथे पर भी आता है
और तेज सीधी धूप से
वन का कोना-कोना
शीशमहल बन जाता है।