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तुम्हारी याद / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
कहाँ है नींद आँखों में
पटकती सर उदासी है
सितम की खाक़ से लिपटी
थकन है बदहवासी है
मेरे आँसू भिगोते है
मेरा तकिया मेरा बिस्तर
चले ये नब्ज़ भी मद्दम
तवाज़ुन में नहीं धड़कन
तुम्हारे बाद से अब तक
तो मेरा हाल है बद्दतर
नहीं जो साथ तू मेरे
मुझे हर पल लगे सदियां
बड़ी मुश्किल से कटती है
उदासी में मेरी घड़िया
मैं इतनी क्यूँ परेशां हूँ
हुई है भूल ये कैसी
जमी है आईने पे
कब से मेरे धूल ये कैसी
समझ में ये नहीं आता
नहीं जिससे कोई नाता
वो क्यूँ कर याद आता है
वहीं क्यूँ दिल को भाता है
मैं बेख़ुद सी ही रहती हूँ
मुझे कुछ होश आने दो
उसे मत याद आने दो
ख़ुदाया भूल जाने दो