भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी हँसी / नीलमणि फूकन / दिनकर कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आश्विन मास की रात
इन्द्रमालती के फूल रो रहे थे

उठकर जाकर देखा

गाँव की गोधूलि की तरह
तुम्हारी हंसी

सुपारी के पेड़ पर
लटक रही है ।

मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार