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तुम्हारे यदि कुछ कहने पर / मक्सीम तांक
Kavita Kosh से
तुम्हारे यदि कुछ कहने पर
तुरन्त न उत्तर दे पाऊँ-
बुरा न मानना, क्षमा कर देना !
कभी-कभी मेरे कंधों पर
आराम कर रहे होते हैं पक्षी
मुझे डर लगता है उन्हें जगाने में ।
कभी-कभी मेरी आँखों के आगे
उठ खड़ी होती हैं मेरे विस्मृत प्रियजनों की छायाएँ
और मैं उनसे बातें कर रहा होता हूँ ।
कभी-कभी मीठे शब्दों की प्यास
जकड़ देती है मेरे होंठ ।
तब कठिन हो जाता है
मुझे तुम्हारा नाम लेना ।
इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता
यदि तुम्हें लटकता दिख रहा हो अलमारी में
मेरे सफ़र का पहरावा ।
मैं अकसर ही अपने दिन, अपनी रातें
बिताता हूँ नारोचान के देवदारों के नीचे
जहाँ छिपे हैं मेरे सब दुख, सब ख़ुशियाँ
और मेरे सब उनींदे विचार ।
रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह