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तुम्हारे लिए / व्लदीमिर मयकोव्स्की

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नहीं ।
यह सच नहीं ।
नहीं !
तू भी ?
तू जिसे प्यार करता हूँ मैं
किसलिए
आख़िर किसलिए ?
ठीक है
मैं भेंट करता था फूल तुझे
पर मैंने तो चुराए नहीं थे चम्मच चान्दी के !
सफ़ेद मैं
गिर पड़ा था चौथी मंज़िल से ।
हवा में झुलस गए थे मेरे गाल ।

प्राचीन देब-प्रतिमाओं का सा गम्भीर
ललाट उठा
राजधानी की विवेकहीन एकरस दिनचर्या से ऊपर ।
तुम्हारे शरीर पर
ठीक जैसे मृत्यु शैय्या पर
हृदय
पूरे कर चुका है
अपने दिन ।
निर्मम हत्या में तुमने मैले नहीं किए अपने हाथ ।

तुमने, बस, इतना कहा
"नर्म बिस्तर पर
वह था
और थे फल
और शराब मेज़ की हथेली पर ।"

ओ मेरे प्रेम,
तुम्हारा यदि कहीं ठिकाना था
तो मेरे रुग्ण मस्तिष्क में !
बन्द कर दो मूर्खतापूर्ण यह प्रहसन ।
देखो —
उतार फेंक रहा हूँ
कवच
मैं — महानतम क्विगजोट !
याद रखो :
पल भर में
थक गए थे ईसा
सलीब पर
भीड़ थी कि गला फाड़-फाड़कर चीख़ रही थी

न्यायसंगत है यह :
जो भी
सोना चाहेगा आराम की नीन्द
थूक दूँगा मैं उसके वसन्त दिवस पर !
कभी भी तरस नहीं खाएगा इनसान
इस संसार को त्याग चुके तपस्वियों पर ।

बहुत हो लिया !
अब
सच, अपनी समस्त आदिम शक्ति की क़सम,
यदि ले आओ तुम कोई ख़ूबसूरत छोकरी मेरे सामने,
ज़रा भी तकलीफ़ नहीं दूँगा अपने हृदय को,
बल्कि बलात्कार करूँगा उससे
और थूक दूँगा उसके वक्ष पर ।
जैसे को तैसा !
फैलने दो प्रतिशोध की यह आग !
हर कान में डालो यह बात :
यह पृथ्वी पूरी की पूरी
क़ैदी है
जिसके एक सिरे से सूर्य ने काट रखे हैं बाल !
जैसे को तैसा !
जान से भी यदि मार डालो मुझे तुम
दफ़्ना दिए जाने के बाद भी
मैं निकल आऊँगा बाहर ।
पत्थर पर घिसकर और तेज़ होंगे चाकू मेरे दाँतों के
कुत्ते की तरह घुस जाऊँगा बैरक में ।
पागल मैं
पसीने और बाज़ार की गन्ध छोड़ते
चाकू से
काट डालूँगा अपने मैले हाथ ।
रात में कूद पड़ोगे !
गो मैने पुकारा हो !
ज़मीन पर से उठ खड़ा होऊँगा सफ़ेद बैल की तरह !
हुआँ-हुआँ करता हुआ ।
फोड़े की तरह उभरी हुई गर्दन
तंग आ गई है जूए
और फोड़े पर भिनभिनाती मक्खियों से ।

बारहसिंघे की तरह मुड़ता हूँ पीछे,
उलझ जाता है टहनियों जैसा सिर
ख़ून से भीगी आँखों से ।
हाँ,
ज़हर पिलाए गए पशु की तरह प्राण नहीं छोड़ूँगा मैं ।
यह आदमी कहीं नहीं जा पाएगा !
मुँह पर अटकी रह गई प्रार्थना —
दयनीय और गन्दा लेट गया वह पत्थर पर ।
उसकी तस्वीर बनाऊँगा
ज़ार के महल के द्वारों पर
राज़िन<ref>रूस में 1670-71 में हुए किसान विद्रोह का नेता स्तिपान राज़िन</ref> के दिव्य मुख पर ।

फेंकों न अपनी किरणें, ओ सूर्य !
सूख जाओ, ओ नदियो,
बुझने न पाए उसकी प्यास —
कि पैदा हों मेरे हज़ार-हज़ार शिष्य
चौराहों पर से धर्मच्युत किए जाने की घोषणा करने के लिए !

ओ अन्तत:
जब शताब्दियों की पीठ पर खड़ा
प्रकट होगा उनके लिए अन्तिम दिन —
हत्यारों और अराजकतावादियों कीअन्धेरी आत्माओं में
प्रज्वलित होऊँगा मैं रक्तिम प्रेतात्माओं की तरह !

सुबह हो रही है
और अधिक खुल रहा है आकाश का मुँह ।
बून्द-बून्द पीता है वह
यह रात ।
खिड़कियों में से आग की लपटें धधक रही हैं
घनी धूप बिखर रही है सोए शहर पर ।

पवित्र है मेरा प्रतिशोध !
पुन:
सड़कों की धूल के ऊपर
पँक्तियों की सीढ़ियों के ऊपर चढ़कर
उँडेल दालो पूरा हृदय
स्वीकारोक्ति में !

कौन हो तुम,
ओ भविष्य के लोगो ?
यह — मैं हूँ
पूरे का पूरा
दर्द और घाव !
तुम्हारे लिए छोड़ रहा हूँ मैं
फलों भरा यह उद्यान
अपने उदत्त हृदय का ।

(1916)
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह

शब्दार्थ
<references/>