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तुम्हारे साथ / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
कहीं दूर
मन की पगडंडियों पर विचरते हुए
मैंने पाया है खुद को तुम्हारे साथ
अपने समूचे अस्तित्व को महसूसती जीती
और तुमसे दूर तुम्हारे बिना मेरा अस्तित्व
मात्र हाड़-माँस की काया
मैं खोजती हूँ खुद को
अकेले इस जीवन को
तुम्हारे बिना जीते हुए