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तुम्हारे हैं तुमसे दया माँगते हैं / शैलेन्द्र

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तुम्हारे हैं तुमसे दया माँगते हैं
तेरे लाडलों की दुआ माँगते हैं

यतीमों की दुनिया में हरदम अंधेरा
इधर भूल कर भी न आया सवेरा
इसी शाम को एक पल भर जले जो
हम आशा का ऐसा दिया माँगते हैं ...

थे हम जिनकी आँखों के चंचल सितारें
हमें छोड़ वो इस जहाँ से सिधारे
किसीकी न हो जैसी क़िसमत है अपनी
दुखी दिल सभी का भला माँगते हैं ...

बचा हो जो रोती क टुकड़ा दिला दो
जो उतरा हो तन से वो कपड़ दिला दो