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तुम्हें आज पहिचान गया / रामकुमार वर्मा
Kavita Kosh से
तुम्हें आज पहिचान गया।
मेरे दुख का समय आज जब--
सुख के समय समान गया॥
वर्षा के नव श्यामल तन में,
छवि थी इन्द्रधनुष के घन में,
चपला की चंचल चितवन से--
द्युति थी उस घुँघराले घन में।
इस सुख के केवल दो क्षण में,
मेरा सारा ज्ञान गया।
तुम्हें आज पहिचान गया॥