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तुम्हें पुकारूँगा गला सूख जाने तक / असंगघोष

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हाँ,
यह रास्ता
मैंने ही चुना था

इस पर चलते हुए
कब
मैं दलदल में
भीतर तक उतर गया
पता ही नहीं चला
और
जब मैंने महसूसा कि
मैं धँसा जा रहा हूँ
तब
मेरे पास केवल हाथ बचे थे
जिन्हें जीने की चाहत में
भरसक कोशिशों की तरह
मारता रहा इधर-उधर
नतीजा
मैं धँसता ही गया और अधिक,
यह दलदल
ऊपरी सतह पर
कुछ गाढ़ा ही था
लेकिन नीचे पतला रहा होगा
तभी तो मैं समाता रहा
लगातार...
बाहर निकलने को
की गई
हर मशक्कत में बहे पसीने ने
मुझे थका दिया
लेकिन
इसका हौसला
मेरे पसीने की गंध पा
और बढ़ गया
मैं धँसा जा रहा हूँ
लगातार
पर जानता हूँ
शायद नहीं बचूँगा किन्तु
मेरे हाथ अब भी बाहर हैं
गला सुख जाने तक
तुम्हें पुकारूँगा
शायद मेरी आवाज
तुम्हारे प्रमोदरत कानों में
कभी पड़े!