भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुला / सुनीता जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संयत होने को तुला
इधर उठी, कभी उधर
झुकी,
बाटों पर बाट दिए
आधे, पौने,
सेर, पचसेरी
डंडी लेकिन नहीं सधी

क्लांत हाथ, तकते-तकते
आँख थकी
एक ठौर का भाग्य नहीं था-
नहीं टिकी।