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तुले हैं इश्क़ को दुनियाँ से सब मिटाने में / रंजना वर्मा
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तुले हैं इश्क़ को दुनियाँ से सब मिटाने को
लगा दें आग चलो बेरहम ज़माने को
थी मुश्किलों से जलायी शमा मुहब्बत की
हवा को देर लगी ही नहीं बुझाने में
हँसी तो देर तलक गूँजती रहे लेकिन
मशक़्क़तें हैं बड़ी अश्क़ को छुपाने में
तमाम रात निगाहों ने इंतज़ार किया
न एक पल लगा उनको नज़र चुराने में
क़रार कर के न आया ये ज़ुल्म था उसका
हमे लगी है सदी यूँ ही मुस्कुराने में
समझ सके न कभी दर्दे दिल के अफ़साने
न कुछ मज़ा है उन्हें राज़े दिल बताने में
नज़र में वस्ल की उम्मीद सजाये रक्खी
मिली है हिज्र की शब आप के बहाने में