भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू अगर हम-कलाम हो जाता / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
तू अगर हम-कलाम हो जाता
ग़म का किस्सा तमाम हो जाता।
तेरी तस्वीर आँख में रहती
दिल में तेरा क़ियाम हो जाता।
झूम जाती ख़ुशी से शामे-ग़म
जो नज़र से सलाम हो जाता।
गुंचा गुंचा चमन का झूम उठता
तू जो महवे-ख़िराम हो जाता।
वो नज़र ही नहीं उठी वरना
कुछ सलामो-कयाम हो जाता।
फिर वो आ जाते बाम पर ऐ दिल
फिर मुन्नवर वो बाम हो जाता।
उन का दीदार कर के ऐ 'अंजुम'
शेर कहते तो नाम हो जाता।