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तू कुछ ना सुनले / चित्रा गयादीन

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चूल्हा के आँच तोर चेहरा झुराई
तोर जिन्दगी राखी में लपेटी
कितना आसा बटोर के खड़ा बाटे
दूध उफला है, दाल खौली
भात सींझे
एक दिन
पिसान के सपना
मन के बातचीत
खचियाइस रहा तोर अँगना में
चार दीवार पर नौता के हाथ
मुस्कियाइस रहा
ओढ़नी ओढ़ के आल तोर द्वार
ए भौजी, ए दुल्हिनिया
ए लीसवा के माई
गोहराइके कहाँ तोके लेके चलगे।