तू चुप क्यों है ? / बीना रानी गुप्ता
ऐ! कारगिल तू, चुप क्यों है ?
तेरी आँखों में आंसू क्यों नहीं ?
तूने देखा है,
रक्तरंजित हाथों से आगे बढ़ते हुए,
गोलियाँ सीने पर खाकर भी
उफ न करते हुए
वायु बिन साँसों को घुटते हुए,
पानी बिन प्यासों को मरते हुए,
आखिरी साँस रही जब तक तन में,
शत्रुओं का सीना छलनी करते हुए।
क्या मिट सकेंगे ?
तेरे बदन पर लगें ये खून के धब्बे ?
तेरी छाती पर ही रौंदे गये तेरे बच्चे ?
क्या कहता है तू ?
यह तेरा दोष नहीं,
यह तो दोष है
उन आस्तीन के साँपों का, जिन्हें
मैंने मित्रता के दूध पर पाला था।
मेरे पाले साँपों ने
मुझे ही डँस लिया है
मेरी पावन धरा को शमशान में बदल दिया है।
मेरी यशस्वी पताका को
क्रूर हाथों ने जला दिया है।
मैं चुप हूँ
कोई है जो,
मेरे हृदय की टीस को दबा दे
मैंने जो देखा है आँखों से अपनी
उसे विस्मृत कर मुझे आज हंसा दे
मुझे आज हँसा दे।