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तू जब से बाहर निकला है / शीन काफ़ निज़ाम
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तू जब से बाहर निकला है
सारा शह्र ग़ज़ल कहता है
रात ढली अब दिन निकला है
हिज्र<ref>वियोग</ref>का सूरज डूब गया है
तेरा मेरा इक रस्ता है
शह्र में क्यूँ तूफ़ान उठा है
एक ह्सीं चेहरे का होना
शह्र का हुस्न बढ़ा एता है
अब नींदों को तरस रहे हैं
ये ख़्वाबों का ख़मियाज़ा है
इतना तो चुपके-से कह दे
सच है तू या इक सपना है
शब्दार्थ
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