भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तूतनख़ामेन के लिए-6 / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम जिए

और ज़िन्दगी जी तुमने भरपूर

ज़िन्दगी की

आँखों में आँखें डालकर


जिए आज में

और सोची कल की

भूलकर

कि काल को भी नहीं पता

कल का पता-ठिकाना ।