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तूतनख़ामेन के लिए-9 / सुधीर सक्सेना

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आँखें हैं,

पर अन्धा है,


जुबान है,

पर गूंगा है

एक जोड़ कानों के बावजूद

बहरा है

तूतनखामेन


मक्खी तक नहीं मार सकता

न हुकुम दे सकता है,

न ताली बजा गुलाम को बुला सकता है

तूतनखामेन


सदियों पहले सपना देखा था तूतनखामेन ने--

जिऊंगा फिर से जीवन


सदियाँ बीत गईं ।

लोग कहते हैं--

तूतनखामेन क़ैद है

पत्थरों की क़ैद में ।


ग़लत कहते हैं लोगबाग

सौ फ़ीसदी ग़लत


पत्थर हो गए

मृत सपनों

और इच्छाओं की क़ैद में

क़ैद है तूतनखामेन ।