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तूने आई लुटा दी अबोध / त्रिलोचन

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तूने आई लुटा दी अबोध


तूने आई लुटा दी अबोध

कैसे बात बन


चलना वाले चले आ रहे

आगे आगे, पीछे पीछे

लगी और भई चले आ रहे

तेरे पग रुके पा कर विरोध

कैसे बातद तकबने


समय नील आकाश हो गया,

आगे पीछे, दाएँ बाएँ

उपर , मौन प्रकाश हो गया

तू ने करणीय समझा विरोध

कैसे बात बने


अनय देख तू विनय बन गया

ममता और समर्पण पर तू

बिना बात के और तन गया

आया नहीं तुझे सात्विक क्रोध

कैसे बात बने


(रचना-काल -22-2-62)