तेरमोॅ अध्याय / श्री दुर्गा चरितायण / कणीक
(देवी कथा स्तोत्र के यै अन्तिम अध्याय में मेधा ऋषि के देवी माहात्म्य वर्णन करला के बाद राजा सुरथ आरो वैश्य समाधि केॅ देवी अराधना के विधि बताबै छै, जेकरा एकाग्रता सें करला पर देवी प्रगट होय के दोन्हूं के वरदान दै छै। यै लेली यै अध्याय के नाम ही सुरथ आरो वैश्य केॅ वरदान नामक अध्याय देलोॅ गेलोॅ छै।)
ऋषि बोललै राजन! देवी के
महिमा के कटियो नहीं थौॅव
हौ जगत्धारिनी माता के
ऐसनोॅ ही सगरो छै प्रभाव।
विद्या, विवेक उत्पन्न करै, विष्णु माया बनि मोह करै,
तोरा, वैश्योॅ, अन्यान्योॅ केॅ मोहित करि हुनीं विवेक हरै।
महाराज! तोहें परमेश्वरी के शरणोॅ में जाय के कर्हौ योग,
जिनकोॅ अराधना सें मनुजों के स्वर्ग मोक्ष औ विविध भोग।
मार्कण्डेय बोललै मेधा मुनि के वचनोॅ के सुनी राजा सुरथ
प्रणाम करी मेधा ऋषि केॅ फिन पालेॅ लागलै उत्तम व्रत।
अति खिन्न राज अपहरणोॅ सें मोहोॅ सें तन्द्रा भी टुटलै,
तट माँटी मूर्ती देवी के, लै फूल, धूप सामग्री हवन,
भक्ति के नाम मनें राखी, वे शुरू करै देवी पूजन।
पहिनें तेॅ रहलै मिताहारी, फिन निराहारी दोनों भेलै,
एकाग्र मनोॅ केॅ सानी दोन्हूं, फिन चिन्तन करै दोनों भिड़लै।
आपन्हैं देहोॅ के लहुवोॅ सें बलि तीन बरस देन्हैं गेलै,
पून अराधना सें प्रशन्न, दर्शन दै देवी प्रगट भेलै।
बोललै राजन! आरो वैश्य तोहें, जेकरोॅ अभिलाषा मन राख्हौ,
होलां प्रशन्न हौ वर लै लेॅ देभौं तुरन्त हौ फल चाख्हौं।
मार्कण्डेय बोललै राजा नें छिनवैलोॅ राजोॅ बात कही,
घुरबाबै के वरदान मांगि फिन कैक जनम के भोग कही।
वैश्योॅ के चित्त तेॅ खिन्न छेलै हौ आरो विरक्ति में सनलै,
आशक्ति मोह के नाशी-ज्ञान, मांगै वैश्योॅ के रूचि जगलै।
देवी बोलली राजन! तोंहें शत्रु नाशी फिन राज पैभौ,
भगवन सूर्य्य के अंशोॅ से फिन जनम लै केॅ जगती अैभौ।
सावर्णि मनु के नामोॅ सें, तोरोॅ यश गान सभ्भैं गैथौं,
चिर काल तलक राजा रहभौॅ, स्थिर तोरोॅ शासन होथौं।
हे वैश्य! जे तोहें वर मांगल्हौ, हौ भी तोरा तुरते मिलथौं,
वै मोक्ष प्राप्ति के हेतु तोरा अभियें ही ज्ञान प्राप्त होथौं।
मार्कण्डेय बोललै दोन्हूं केॅ मनविच्छा वर दै साथ-साथ,
अम्बिका बिलैली तुरते ही, स्तुति सुनी लेला के बाद।
है रङ देवी सें वर पाबी, क्षत्रिय में श्रेष्ठ सुरथ फेनू,
सुर्य्योॅ सें जनम लै केॅ बनलै, विख्यात हुनीं सावर्णि मनु॥29॥
(यैअन्तिम अध्याय में उवाच 6 अर्ध श्लोक 11 आरो श्लोक 12 छै, कुल मिलाय के सौंसे चण्डी पोथी के कथास्तोत्र भागोॅ में उवाच मंत्रोॅ के गिनती 57 अर्ध श्लोकोॅ के गिनती 42 अवदान मंत्रोॅ (त्रिपान्मंत्र) के गिनती 66 आरो श्लोकोॅ के गिनती 535 होलै, कुल मिलाय केॅ पहिलकोॅ 671+ यै अध्याय के 29 श्लोकोॅ केॅ मिलाय केॅ दुर्गा-सप्तसती बनलै।)