भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरा नाम / जयंत परमार
Kavita Kosh से
फूल की पत्ती-पत्ती पर
अपनी उँगलियों से
लिखता हूँ तेरा नाम!
फूल तो झड़ जाता है
लेकिन तेरा नाम
ख़ुशबू बनकर
फैल रहा है चारों ओर!