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तेरे अधरों की चौपाई / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
तेरी प्यारी मनमोहक छवि मेरे मन को ऐसे भायी।
मन करता अधरों से बाँचूँ तेरे अधरों की चौपाई.
ऐसे ही दिखते हैं तुझमें
कितने दोहे-छंद-सवैया।
देख-देख कर आनंदित हो
मन करता है ता-ता-थैया।
पढ़ने को पूरी रामायण है कितनी आतुरता छाई.
तेरी प्यारी मनमोहक छवि मेरे मन को ऐसे भायी।
इतना रखना ध्यान कि मेरा
ध्यान कभी ना बँटने पाये।
ऐसे पाठ करूँ मैं पूरा
पंक्ति-पंक्ति मुझको रट जाये।
आज दहाई दिखते हैं हम कल हो जायें एक इकाई.
तेरी प्यारी मनमोहक छवि मेरे मन को ऐसे भायी।
दिन में दूनी रात चौगुनी
प्रीत हमारी हो यों गहरी।
धरती से अम्बर तक गूँजे
प्यार भरी अपनी स्वर-लहरी।
पूरी हो हर मनोकामना आओ मिलकर करें दुहाई.
तेरी प्यारी मनमोहक छवि मेरे मन को ऐसे भायी।