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तेरे कूचे में हम यूँ ही / राजश्री गौड़
Kavita Kosh से
तेरे कूचे में हम यूँ ही कभी भटका भी करते थे।
किसी भी रोज हम मिल पायें ये सोचा भी करते थे।
कभी उम्मीद का दामन ये हमसे छूट जाता था,
तुम्हें बस याद करके जानां हम रोया भी करते थे।
बहाना जब भी मिलने का तुमसे सूझता कोई,
हम अपनी बेखुदी के साथ फिर उलझा भी करते थे।
तुम्हारी याद आकर जब लिपट जाती थी बिस्तर से,
जगा करते थे रातों को कभी तड़पा भी करते थे।
हमारी इक झलक के वास्ते बेचैन होकर तुम,
मेरी गलियों की अक्सर ख़ाक तुम छाना भी करते थे।
कभी जब आते घर मेरे मिलन की आस लेके तुम,
बड़ी हसरत भरी नजरों से तुमको ताका भी करते थे।
कभी उस मोड़ पर मुड़ कर तुम्हें मैं देखा करती थी,
अगर तुम मुस्करा देते तो हम शरमाया भी करते थे।