भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरे दामन की हवा माँगते हैं / साग़र सिद्दीकी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरे दामन की हवा माँगते हैं
हम भी जीने की दुआ माँगते हैं

मुतरिबों कोई अछूता नग़्मा
साज़ आहंग-ओ-सदा माँगते हैं

माह-ओ-अंजुम के झरोखे अक्सर
किसी के आरिज़ की दुआ माँगते हैं

फिर पतंगों में ख़ुदाई जागी
शोले हश्र-नुमा माँगते हैं

बंदा-परवर कोई ख़ैरात नहीं
हम वफ़ाओं का सिला माँगते हैं

मैकदा हो के कलीसा "साग़र"
सारी दुनिया का भला माँगते हैं