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तेरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती / ज़क़ी तारिक़

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 तेरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती है
 हयात किस से कहूँ कैसे अब गुज़रती है

 गुमान होता है मुझ को तुम्हारे आने का
 हवा इधर से दबे पाँव जब गुज़रती है

 हमारा क्या है किसी तौर कट ही जाएगी
 सुकून से उन की तो शाम-ए-तरब गुज़रती है

 मुझे वो लम्हा क़यामत से कम नहीं होता
 कोई कराह समाअत से जब गुज़रती है

 गुज़र रहा हूँ जिस एहसास के अज़ाब से मैं
 क़यामत ऐसी किसी दिल पे कब गुज़रती है

 ये राह-ए-शौक़ है कुछ एहतियात है लाज़िम
 'ज़की' सबा भी यहाँ बा-अदब गुज़रती है