तेसरॅ सर्ग: राम / गुमसैलॅ धरती / सुरेन्द्र 'परिमल'
है कर्म-भूमी लीलामय छै, लीला सें अग-जग रंगलॅ छै।
रंग-रंग के रूप भिन्न, नर भ्रम-जालॅ में फँसलॅ छै।
रंगीन महल छै मोहॅ के ममता के जेकरा में निवास।
खिड़की-दरबाजा दुर्गुन के भरलॅ छै सगरो आस-पास।
स्वारथ के स्वप्निल दुनियाँ में, प्राणी डुबलॅ उतरैलॅ छै।
आगू-पीछू के भेद अगम, समझॅ में केकरा ऐलॅ छै।
जीवन के मतलब जीवन छै, मानव-जीवन अनमोल यहाँ।
कुछ नै समझै छै कहाँ लक्ष्य, चढ़ना छै कोन हिंडोल कहाँ?
मतलब छै, केवल मतलब छै, मतलब पर प्राण निछावर छै।
लेकिन मतलब के की मतलब? जों मतलब केॅ नै जानै छै।
दू-चार घड़ी लॅे आना छै, जीवन के मोल चुकाना छै।
लेकिन दुनियाँ में भरमै छै, माया ठगनी के जालॅ में।
है महामोह के रूप अगम, जें जीवन केॅ झुठलाबै छै।
रस्ता मिलना छै अगर कहीं, ओकरा पर पर्दा डालै छै।
लौकिक जीवन के छाया में, बस एक किरण ने ताकै छै।
बोलै छै केवल एक बोल, देखलॅ अनदेखलॅ नापै छै।
छै समय बड़ा बलवान यहाँ, कर्मॅ पर सब दिन टीकलॅ छै।
जेकरॅ हाथॅ में पड़ी-पड़ी जीवन के धारा बदलै छै।
छै वर्त्तमान बीचॅ में दोनों भूत-भविष्यत छोरॅ पर।
जीवन रहस्य छै, की घटतॅ कखनी जे कोनी मोड़ॅ पर।
लेकिन, महिमा छै वर्त्तमान के, एक्के वहेॅ नियंता छै।
ओकर्है पर सब-टा टिकलॅ छै कर्म डोरी पर मन्ता के।
जें बूझै छै ये बातॅ केॅ, वें आपनॅ रूप निहारै छै।
सोची समझी केॅ डेग धरै, वें गिरलॅ काम सम्हारै छै।
जीवन तेॅ फोंका पानी के आबै छै फरू बिलाबै छै।
जन्मॅ पर मरन सबार यहाँ सृष्टी के नाब चलाबै छै।
लेकिन ओकरे छै जन्म सुफल जें नाम करलकॅ कर्म सें।
देॅ केॅ दुनियाँ केॅ मर्म कोय, जें काम करलकॅ धर्मॅ सें।
जीवन आशा के फूल सुगंधित बगिया के अभिमान छेकै।
दुनियाँ के घोर अन्हारॅ में, मुस्कैलॅ एक बिहान छेकै।
जीवन कर्म के पुंज भावना, कर्त्तब्यॅ के मोल छेकै।
आदर्श अखाड़ा के शोभा, त्यागॅ के अजगुत खेल छेकै।
ममता छेकै पानी जे सें जीवन-बगिया हरियाबै छै।
नेहॅ के, प्यार-दुलारॅ के, पुरबैया में लहराबै छै।
बचपन के झूला, स्बाद, ललक सें भरलॅ प्यास जुआनी के।
अच्छा बेजाय के मर्म कथा अजगुत सिलसिला कहानी के।
बस, यहेॅ कहानी जीवन के दुनियाँ में ठेढ़ॅ पाबै छै।
बाकी सबकुछ तेॅ समय सोत में भाँसी केॅ बिसराबै छै।
बेटा छेकै कुल के दीपक, जीवन भर के सपना छेकै।
अनमोल रतन अरमानॅ के, कल्पना-लोक-महिमा छेकै।
ओकरा लेॅ जे कुछ करॅे मायँ सब थोडॅ, वै में तृप्ति कहाँ?
ऊ माय धन्य छै, ओकरॅ काम में तनियों अपकीर्ति कहाँ?
ओकरॅ गोदी के झूला में, किलकारी मारने छै बचपन।
ओकरॅ गोदी पाबी केॅ जरलॅ आगिन भी बनलै चंदन।
ओकरॅ महिमा केॅ गाबी केॅ काँटा केॅ फूल बनैने छै।
आय्यो वें ने जंजालॅ सें छुटकारा खूब दिलैने छै।
झुट्ठा सुख केॅ सुख मानी केॅ, लेकिन पड़लॅ छै पिता विकल।
ममता के बेगें ने विवेक सें करने छै की देखॅ छल।
प्रेमें कमजोर बनाबै छै, प्रेमें मजबूत बनाबै छै।
ई दुनियाँ भूल-भूलैया छै, कुछ नै समझॅ में आबै छै।
प्रेमॅ के मोह उमड़लॅ छै, तोड़ी केॅ कूल-कगारा केॅ।
छोड़ै लेॅ जें नै चाहै छै, प्राणॅ सें बेसी प्यारा केॅ।
सायद जीवन के मर्म यहो, प्रेमॅ के महिमा भारी छै।
जेकरॅ डोरी के बंधन में सब राजा रंक भिखारी छै।
छै पिता धन्य सिलसिला बढ़ैल्कै कुल के अमर कहानी के।
यद्यपि प्राण तड़पै छै जेना मछली बाहर पानी के।
टिकलॅ छै धरती के बैभव, बस तरी त्याग बलिदानॅ पर।
लिप्सा सें दूर रहै वाला रघुकुल के बज्जड़ आनॅ पर।
गौरब के एक हिलौरें ने प्राणॅ केॅ गद-गद करी गेलै।
रामॅ के हिरदै कैकेयी के कृतज्ञता सें भरी गेलै।
हे माय! तोंहीं मोका देल्हेॅ।
यै कुल के मान बढ़ाबै लेॅ।
पुरखा के चरणॅ में आपनॅ
जीवन के अर्घ चढ़ाबै लेॅ।