भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तैयारियाँ / एरिष फ़्रीड
Kavita Kosh से
पहले पेशकश
दुविधा की
फिर कोशिशें
वज़ह ढूंढ़ने की
कि दुविधाएँ दूर हों
फिर पहचानना
कि ये वज़हें
अब काफ़ी नहीं हैं
फिर लगातार नई दुविधाएँ
फिर इन सबके बावजूद
बिल्कुल निराश न होने की कोशिश
फिर पूछना कि आख़िर क्यों नहीं
फिर बिलकुल दुविधाओं में डूब जाना
और इनके बाद
अगर मुमकिन रह जाए
लिखना
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य