भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तैसी चख चाहन चलन उतसाहन सोँ / नील कंठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तैसी चख चाहन चलन उतसाहन सोँ ,
तैसो बिवि बाहन बिराजत बिजैठो है ।
तैसो भृगटी को ठाट तैसोई दिये लिलाट
तैसोई बिलोकिबे को पी को प्रान पैठो है ।
कहै कवि नीलकँठ तैसी तरुनाई तामे ,
यौवन नृपति सो फिरत ऎँठो ग्वैंठो है ।
छूटी लट भाल पर सोहै गोरे गाल पर ,
मानों रूप माल पर ब्याल ऎँठि बैठो है ।


नील कंठ का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।