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तोड़ देती हैं बेड़ियाँ अक्सर / अलका मिश्रा

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तोड़ देती हैं बेड़ियाँ अक्सर
क़ैद में रह के बेटियाँ अक्सर

चीर देती हैं दिल के दामन को
तंग ज़ेह्नों की बर्छियां अक्सर

ख़्वाब आँखों में छोड़ कर आधे
जाग जाती हैं लड़कियाँ अक्सर

ज़ह्र रिश्तों में घोल देती हैं
सख़्त लहजे की तल्खियां अक्सर

नाम पर्ची पे उसका लिख लिख के
दिल लगाता है अर्ज़ियाँ अक्सर

जब भी सोचूँ मैं उसके बारे में
याद आती हैं खूबियाँ अक्सर

ज़िन्दगी औरतों को देती हैं
घर की छोटी सी खिड़कियाँ अक्सर

दिल में चुभती हैं आज भी मेरे
टूटे रिश्तों की किर्चियाँ अक्सर