भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोरोॅ बिना / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
Kavita Kosh से
तोरोॅ बिना सभे सूनोॅ छै!
आदत नै पीछू देखै के,
आदत नै बितलोॅ लेखे के
तय्यो लागै छै जिनगी में दुख के दिन सुखसें दूनोॅ छै!
तोरोॅ सोचै के परिपाटी
बात-बात के झगड़ा-झाँटी
आय प्रेम के तेज धार में सब बहलोॅ मन के धोनोॅ छै।
सूनोॅ कोना-कोना घर के
सूनोॅ सब धरती-अंबर के
दुनियाँ भर के सुख के साधन, असकरुवा में बिननोनोॅ छै!