तोहीं कहलौह घोॅर बनाय लेॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'
तोहीं कहलौह घोॅर बनाय लेॅ भाड़ा में नैं रभौं जी।
बेटी के कोहबर काटी केॅ कहाँ-कहाँ लै जैभौं जी?
खपड़ा छौनी सगरोॅ चूऐ
पानी उपछै छी दिन रात।
मॉेन उछीनों रंग लागै छै
जब-जब आबै छै बरसात।
ई शहरेॅ सें गामेॅ नीकॅ पथ पर आँख बिछैभौं जी।
तों ही कहलौह... कहाँ-कहाँ लै जैभौं जी।
दोनों मिलके ठाानी लेलियै,
पक्का घोॅर बनाना छै।
काटी कपची पैसा जोड़बै।
तानेॅ मोॅन धोॅन लगाना छै।
धीरें-धीरें देलहौ भरोसा दूमहला पहुँचैभौं जी।
तो हीं कहलौह.. कहाँ-कहाँ ले जैभौजी।
तोहीं सपना पूरा करलेहैं
पानी-बिजी सब कुछ देलेॅहै
स्मारक तोरे अनुपम छौं
तोहीं सब कुछ देॅ केॅ गेलेहॅ।
एक दिन कहलेहॅे साथें-साथें चली के हरदम दोनों आँख जुड़ेॅ भौं जी।
तोहीं कहलौह.. कहाँ-कहाँ ले जैभौं जी।
रही-रही के याद पड़ै छै।
की रंग मेहनत करलेहॅ जी।
अपना सुख लेॅ कभी न मर लेहेॅ
सब लेॅ प्यार लुटैलैहॅ जी।
आबें तोहीं बोलॅ तोरा बिना हम्में कैनाँ रहभौं जीं।
तोहीं कहलौह.. कहाँ-कहाँ लै जैभौं जी।
25/03/2015 दिन के बारह बजे