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त्याग की परिभाषा / सौरभ
Kavita Kosh से
ज्ञानी कहते हैं सीखो त्याग
पर हे ज्ञानी
त्याग तो भोग से ही सँभव है
त्याग तो उसी का कर पाऊँगा मैं
जिसका मैंने किया हो भोग।
हे ज्ञानी!
सब महापुरुष पहले तो थे पुरुष ही
कृष्ण, राम हो या हो बुद्ध महावीर
पहले यह सब थे तो राजा ही
माना बाद में सम्राट बने
गृहस्थ से ही सँत हुये नानक और कबीर
यह माना कि
हम भोग कर उसी में रहे लिप्त
और यह वह है जो भोग से ऊपर उठ
कहलाए अष्टावक्र
जिन्हें बाद नें हुआ थोड़ा
वह जनक कहलाए।