भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

था कहा "पयोधर पर कर मेरे नील-झीन-कञ्चुकी धरें / प्रेम नारायण 'पंकिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


था कहा ”पयोधर पर कर मेरे नील-झीन-कञ्चुकी धरें।
बाँधे श्लथ-बन्धन-ग्रंथि सुभग कुच अर्ध छिपे आधे उभरे।
रच दूँ पयोधरों के अन्तर में हरित-कमल-कोमल डंठल।
रक्ताभ चंचु में थाम उसे युग थिरकें बाल मराल धवल।
आवरण-विहीन उदर-त्रिबली में झलके भागीरथी बही।
हीरक-माला में गुँथी मूर्ति हो प्रथम-मिलन-निशि की दुलही।।“
ओ मनुहारक! आ जा विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥55॥