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था कहा सुमन-मेखला-वहन से बढ़ती श्वांस समीर प्रबल / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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था कहा सुमन-मेखला-वहन से बढ़ती श्वांस समीर प्रबल ।
प्रश्वांस-सुरभि-पंकिल सरोज-मुख आ घेरते भ्रमर चंचल ।
प्राणेश्वरि सम्बोधन से ही खिल जाते गाल गुलाबी हैं ।
हो जाते तेरे नील जलद से तरलित दृग मायावी हैं ।
मधुकर-पक्षापघात-मारुत कर जाता भृकुटि-अधर-स्पंदन।
यह कह-कह रस बरसाने वाले छोड़ गये क्यों मनमोहन ।
कब विधु-मुख देखेगी विकला बावरिया बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली ॥39॥